लाजवर्त जिसका एक नाम इंग्लिश में लैपिस लाजुली (Lapis Lazuli ) है। यह एक उपरत्न है जिसे शनि ग्रह के रत्न नीलम के उपरत्न रुप में धारण किया जाता है। ज्योतिष में लाजवर्त की व्याख्या आसमान के सितारों से की जाती है। इस उपरत्न का रंग गहरा नीला होता है और इस पर पीले रंग के धब्बे भी पाए जाते हैं जिसे पाइराइट कहते है।
लाजवर्त न केवल ग्रह की शांति हेतु उपयोग होता है अपितु इस रत्न का उपयोग सोने और चाँदी के सुंदर- सुन्दर आभूषण बनाने में भी किया जाता रहा है। लाजवर्त स्टोन का उपयोग प्राचीन समय से हो रहा है जिसका प्रमाण पुराणी समय की अनेक सभ्यताओं में देखा जाता रहा है। इसका उपयोग न केवल भारतीय प्राचीन संस्कृति में ही था, अपितु इसका उपयोग सिंधु घाटी की सभ्यता में मिले अवशेषों में भी देखा गया है। इसके सुन्दर चमकदार रंग के कारण ही यह रत्न इतना बहुमूल्य रहा है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में इसे नव रत्नों में स्थान दिया गया है।
लाजवर्त कहाँ - कहाँ मिलता है ?
लाजवर्त मुख्य रूप से अफ़गा़निस्तान, साइबेरिया, म्यांमार और कैलिफ़ोर्निया में पाया जाता है. इसके साथ ही यह चिली देश में भी यह पाया जाता है. लाजवर्त रत्न को फरवरी माह में पैदा होने वाले लोगों के लिए अनुकूल माना गया है।
लाजवर्त स्टोन के गुण
इस उपरत्न में ग्रहो के अलौकिक गुणों को बढा़ने की अदभुत क्षमता है। इस उपरत्न से जातक की उदासी का अंत होता है और एक तरह से बुखार की रोकथाम में भी इस उपरत्न का उपयोग किया जा सकता है। यह रत्न जातक को नकारात्मक भावनाओं को दूर रखता है, यह गले संबंधी विकारों को दूर करता है और यह उपरत्न उन व्यक्तियों के लिए भी अच्छा माना जाता है जो मधुमेह ( डायबिटिज ) की बीमारी से ग्रसित है। यह स्टोन व्यक्ति की सहनशक्ति बढा़ने में भी सहायक होता है।
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लाजवर्त के अलौकिक गुण
इस उपरत्न को धारण करने से जातक की मानसिक क्षमता का विकास होता है। उसके मस्तिष्क के अंदर शांति बनी रहती है। मस्तिष्क के अंदर किसी भी निर्णय को लेने में स्पष्टता रहती है जातक के पुरुषार्थ का विकास होता है। ये उपरत्न अध्यापन के कार्य से जुडे़ लोगो की क्षमताओं में वृद्धि करता है जिससे वह अपने कार्य पर अपना पूर्ण ध्यान केन्द्रित करते हैं। ये रत्न जातक की रचनात्मकता और आत्म अभिव्यक्ति में वृद्धि करता है. यह उपरत्न धारणकर्त्ता के तनाव को दूर करता है और आध्यात्म में वृद्धि करता है. यह उनकी भी सहायता करता है जो व्यक्ति जीवन के सभी सूक्ष्म मूल्यों को समझते हैं.
कौन धारण करे ?
जिन व्यक्तियों की कुण्डली में शनि ग्रह शुभ भावों के स्वामी होकर निर्बल अवस्था में स्थित हैं वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं। इसे धारण करने से पहले किसी अच्छे ज्योतिष से सलहा जरूर ले। ताकि आपको किसी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े।
लाजवर्त रत्न पहनने से लाभ
लाजवर्द हृदय को शक्ति देता है, प्रदर रोग में लाभकारी होता है, रक्त की शुद्धि करता है, परेशानियों को दूर करता है। घबराहट, दुख, और रक्त दोष, और मानसिक रोगों में लाभकारी होता है।
लाजवर्त रत्न को धारण करने से जातक को मानसिक रुप से शांति प्राप्त होती है. इसी वजह से इस रत्न का उपयोग हीलिंग चिकित्सा में भी किया जाता है. यह रत्न जातक के नकारात्मक प्रभाव में कमी लाने वाला होता है. इस रत्न की ऊर्जा और प्रकाश के कारण इसके आस-पास का माहौल काफी शुभदायक होता है. इस रत्न को कई मामलों में स्वतंत्रता और उन्मुक्तता का अनुभव कराने वाला कहा जाता है.
इस रत्न के प्रयोग से जातक की एकाग्रता में वृद्धि होती है. चीजों को याद रखने की आदत में इजाफा होता है. मनोविज्ञान से संबंधित कामों में भी इसका फायदा है. जो छात्र पढ़ाई में कमजोर हैं उनके कमरे में इस रत्न का उपयोग करना बेहतर होता है. यह रत्न बौद्धिकता और ज्ञान में वृद्धि कराने का कारक होता है. कार्यक्षेत्र में सफलता के लिए इस रत्न का उपयोग भी किया जाता है. अगर आप नौकरी में सफलता के लिए प्रयासशील हैं तो इस रत्न का उपयोग फायदेमंद होता है |
जिन कामों में रचनात्मकता की जरुरत हो उस स्थान पर इस रत्न के उपयोग से चमत्कारिक फायदा मिलता है. अगर आप किसी पत्रकारिता के काम में जुड़े हैं या फिर किसी संस्थान में सलाहकार के रुप में कार्यरत हैं तो ये रत्न बहुत फायदेमंद होता है. इस रत्न का उपयोग जातक के आलसीपन को भी दूर करने वाला होता है. व्यक्ति अपने काम के प्रति सजग होता है. उसका ढुलमुल रवैया समाप्त होता है. यह व्यक्ति पर तुरंत अपना प्रभाव देने में भी सक्षम होता है.
इस रत्न का उपयोग गले और आवाज से संबंधित रोगों से बचाव के लिए भी इस रत्न के उपयोग से लाभ मिलता है.
लाजवर्त कैसे धारण करें
रत्न शास्त्र अनुसार लाजवर्त को शनिवार के दिन चांदी की अंगूठी या लॉकेट में बनवाकर धारण करना चाहिए। इस रत्न को माला और ब्रेसलेट भी पहना जा सकता है। इसे दायें हाथ की मध्यमा उंगली में धारण करना शुभ होता है। इसे धारण करने से पहले सरसों या तिल के तेल में पांच घंटे पहले डुबोकर रखें। इसके बाद नीले कपड़े पर रखकर नीचे दिए गए शनि के मंत्र का 1100 बार जप करे।
मंत्र :- ऊं प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम: ।।
धूप-दीप, नैवेद्य कर इसे कपड़े से पोंछकर सूर्यास्त के बाद इसे धारण करें। इसके बाद शनि ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान निकालकर किसी गरीब या जरूरतमंद को देकर आएं।
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लाजवर्त की पहचान और गुणवत्ता
लाजवर्त अगर गहरे नीले रंग की चमकती हुई आभा लिए हुए हो तो यह बहुत ही अच्छा माना जाता है. इसके रंग और इसकी बनावट के आधार पर ही इसकी कीमत भी तय होती है। लाजवर्त के ऊपर पाइराइट के छोटे छोटे क्रिस्टल्स लगे हुए होते है जो इसमें चमक लाते है।
लाजवर्त की कीमत कितनी होती है ?
वैसे तो लाजवर्त एक उपरत्न है जो नीलम की जगह डलवा दिया जाता है। ये स्टोन नीलम जितना तो महंगा नहीं होता लेकिन फिर भी इसकी कीमत ठीक ठाक होती है। इसकी कीमत 50 rs रत्ती से शुरू होकर 400 /- 500 /- rs रत्ती तक जाती है। जो लाजवर्त सस्ते होते है वो कलर किये हुए होते है। कुछ समय बाद उनका कलर फेड होजाता है और वो सफ़ेद सफ़ेद से दिखने लगते है। जो नेचुरल कलर में आते है वो थोड़े महंगे होते है और ज्यादा आकर्षक होते है।
कौन धारण नहीं करे
पुखराज, माणिक्य, मोती, मूँगा रत्न अथवा इनके उपरत्न के साथ लाजवर्त (Lapis Lazuli) उपरत्न को धारण नहीं करना चाहिए।
असली और नेचुरल लाजवर्त कहाँ मिलेगा ?
वैसे तो लाजवर्त स्टोन आपको किसी भी जेवेलर पर मिल जायेगा। लेकिन अगर असली और नेचुरल लाजवर्त की तलाश में है तो आप हमारी वेबसाइट www.gemshub.in पर जाकर ले सकते है या आप हमारी शॉप पर आकर भी ले सकते है। हमारी शॉप का पता वेबसाइट पर दिया गया है हमारे यहाँ Cash On Delivery और EMI की सुविधा भी मिलती है। तो आप जब भी कोई रतन लेना चाहे, तो एक बार हमारी वेबसाइट जरूर विजिट करे।
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"आपका लाजवर्त रत्न पर लेख बेहद जानकारीपूर्ण और विस्तृत है। इसमें रत्न के गुण, फायदे और उसके उपयोग की सभी महत्वपूर्ण जानकारी शामिल है। इस लेख ने मुझे इस अद्भुत रत्न के बारे में और अधिक जानने के लिए प्रेरित किया। धन्यवाद!"
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