Description
पारद नंदी
संस्कृत में ‘नन्दि’ का अर्थ प्रसन्नता या आनन्द है।
नंदी को शक्ति-संपन्नता और कर्मठता का प्रतीक माना जाता है। जिन्हे बैल के रूप में शिवमंदिरों में प्रतिष्ठित किया जाता है। हिन्दू धर्म में, नन्दी कैलाश के द्वारपाल हैं, जो शिव का निवास है। वे शिव के वाहन भी हैं नंदी भगवान शिव का प्रमुख अनुयायी है, वह सफेद रंग का बैल है जो रक्षक, परिवहन का प्रमुख माध्यम और कैलाश और भगवान शिव का ध्यान रखने वाला है। उसकी श्वेत उपस्थिति शिवा के पवित्र, स्वच्छ और समर्पित होने का प्रतिनिधित्व करती है। वह शिवा के अनुयायियों के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है। शैव परम्परा में नन्दि को नन्दिनाथ सम्प्रदाय का मुख्य गुरु माना जाता है, जिनके 8 शिष्य हैं- सनक, सनातन, सनन्दन, सनत्कुमार, तिरुमूलर, व्याघ्रपाद, पतंजलि, और शिवयोग मुनि। ये आठ शिष्य आठ दिशाओं में शैवधर्म का प्ररसार करने के लिए भेजे गये थे।
एक बार नंदी पहरेदारी का काम कर रहे थे। शिव पार्वती के साथ विहार कर रहे थे। भृगु उनके दर्शन करने आये- किंतु नंदी ने उन्हें गुफा के अंदर नहीं जाने दिया। भृगु ने शाप दिया, पर नंदी निर्विकार रूप से मार्ग रोके रहे। ऐसी ही शिव-पार्वती की आज्ञा थी।
एक बार रावण ने अपने हाथ पर कैलाश पर्वत उठा लिया था। नंदी ने क्रुद्ध होकर अपने पांव से ऐसा दबाव डाला कि रावण का हाथ ही दब गया। जब तक उसने शिव की आराधना नहीं की तथा नंदी से क्षमा नहीं मांगी, नंदी ने उसे छोड़ा ही नहीं।
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